क्या है कानपुर का गंगा मेला और इसका इतिहास
उत्तर प्रदेश कानपुर। शहर का गंगा मेला एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जिसका इतिहास 1942 में शुरू हुआ था। यह मेला स्वतंत्रता संग्राम के साथ जुड़ा हुआ है और इसकी शुरुआत एक विशेष घटना से हुई थी। उस समय, अंग्रेजों ने 45 स्वतंत्रता संग्रामियों को गिरफ्तार किया था, जिसमें चंद्र सेठ, बुधुलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा, विश्वनाथ टंडन, हमीन खान और गिरीधर शर्मा आदि शामिल थे। इसके विरोध में कानपुर के पूरे मार्केट को बंद रखा गया था, जिसका समर्थन स्थानीय लोगों, व्यापारियों, कर्मचारियों और लेखकों ने संयुक्त रूप से किया था और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अभियान चलाया था। होली से 5वें दिन, जिसे अनुराधा नक्षत्र के रूप में जाना जाता है, उस दिन सभी गिरफ्तार स्वतंत्रता संग्रामियों को छोड़ दिया गया था। स्वाधीनता संग्रामियों की अंग्रेजी हिरासत से मुक्ति की खुशी में लोगों ने अपने चेहरों को चटकदार रंगों से रंग लिया था जिसे अंग्रेजों पर एक ऐतिहासिक जीत के रूप में मनाया गया था। गंगा मेला के दिन चटकदार रंगों से गाड़ियों, ऊंट आदि को सजाकर जुलूस निकाला जाता है। जुलूस की शुरुआत हाटिया मार्केट से होती है, जो कानपुर की लगभग 1 दर्जन से अधिक जगहों से होकर गुजरता है। नयागंज, चौक सर्राफा आदि जगहों से होते हुए यह जुलूस दोपहर के करीब 2 बजे हाटिया के रज्जन बाबु पार्क में जाकर खत्म होता है। बाद में शाम को गंगा मेला सरसैया घाट पर लगता है, जिसमें पूरे कानपुर से लोग जुटते हैं और एक दूसरे को होली की बधाईयां देते हैं।
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