पू 19 गोलियों ने छीन गया था सुहाग फिर बनी विधायक

19 गोलियों ने छीन गया था सुहाग फिर बनी विधायक 

शादी के दस दिनों में मिट गया था माथे का सिंदूर 

Today crime news 

उत्तर प्रदेश। सपा विधायक पूजा पाल को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित कर दिया। 14 अगस्त को किया निष्कासित वजह- पूजा ने विधानसभा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 'शून्य सहिष्णुता' नीति की तारीफ की और माफिया अतीक अहमद के खात्मे के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।

यह वही अतीक था, जिसे पूजा पाल अपने पति और तत्कालीन बसपा विधायक राजू पाल की 2005 में हुई बर्बर हत्या का जिम्मेदार मानती थीं। अतीक, जो कभी समाजवादी पार्टी का दबंग नेता और मायावती के सबसे बड़े राजनीतिक दुश्मनों में से एक था। पूजा पाल की कहानी सिर्फ एक विधवा बनी महिला की नहीं, बल्कि उस राजनीति की है, जहां दर्द को भी वोट बैंक में बदला जाता है। राजू की हत्या ने न सिर्फ पूजा की जिंदगी बदल दी, बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत में भी एक नया मोड़ लाया।
                                                                   
19 गोलियों ने छीना सुहाग

25 जनवरी 2005 को प्रयागराज (तब इलाहाबाद) की सड़कों पर खून की होली खेली गई। बसपा के नवनिर्वाचित विधायक राजू पाल, जो 15 जनवरी 2005 को पूजा पाल के साथ शादी के बंधन में बंधे थे, स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल से अपनी क्वालिस गाड़ी में निकले। तभी स्कॉर्पियो सवार पांच हमलावरों ने उन पर ताबड़तोड़ 19 गोलियां दाग दीं। इस हत्याकांड में माफिया अतीक अहमद और उसके गुर्गों का नाम सामने आया। मात्र 10 दिन की नई-नवेली दुल्हन पूजा पाल का सुहाग छिन गया।
                                                                       
क्यों किया पूजा को विधवा?

2004 में अतीक अहमद सपा के टिकट पर फूलपुर से सांसद बने। उनके सांसद बनने से इलाहाबाद पश्चिम सीट खाली हुई, जहां अतीक ने अपने भाई अशरफ को उपचुनाव में उतारा। लेकिन बसपा के राजू पाल ने अशरफ को हराकर अतीक के सियासी दबदबे को चुनौती दी। यह हार अतीक के लिए अपमानजनक थी, जिसका बदला राजू पाल की हत्या के रूप में लिया गया।

पूजा पाल का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता पंचर जोड़ने का काम करते थे। आर्थिक तंगी को मात देने के लिए पूजा ने एक निजी अस्पताल में नौकरी शुरू की। यहीं, पूजा की मुलाकात राजू पाल से हुई। दोनों के बीच प्यार पनपा और राजू ने पूजा को अपनी 'रानी' बनाने का फैसला किया। बसपा के टिकट पर विधायक बनते ही राजू ने 15 जनवरी 2005 को पूजा से शादी रचाई, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
                                                                        
मायावती-अखिलेश का सियासी खेल

राजू पाल की हत्या के बाद बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती (Mayawati)ने 2007 में सहानुभूति और 'वुमन कार्ड' का दांव खेला। उन्होंने पूजा पाल को इलाहाबाद पश्चिम से अतीक के भाई मोहम्मद अशरफ के खिलाफ चुनाव में उतारा। पूजा ने शानदार जीत हासिल की और पहली बार विधायक बनीं। 2012 में भी वह बसपा के टिकट पर इसी सीट से जीतीं। मायावती ने इस जीत के जरिए इलाहाबाद पश्चिम सीट को 2007 से 2017 तक अपने कब्जे में रखा। हालांकि, 2018 में मायावती ने पूजा को पार्टी से निष्कासित कर दिया।

इसके बाद समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav)ने मौके को भुनाया। 2019 में पूजा सपा में शामिल हुईं और 2022 में कौशांबी के चायल विधानसभा क्षेत्र से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। एक बार फिर पूजा ने जीत का परचम लहराया।
                                                                        
पूजा पाल का सियासी यात्रा 
2007: बसपा के टिकट पर इलाहाबाद पश्चिम से मोहम्मद अशरफ को हराकर पहली बार विधायक बनीं।
2012: उसी सीट से दोबारा जीत हासिल की।
2018: बसपा से निष्कासित।
2019: सपा में शामिल।
2022: चायल (कौशांबी) से सपा के टिकट पर विधायक चुनी गईं।

सपा से निष्कासन सियासी पारी का अंत या नया सवेरा?
14 अगस्त 2025 को सपा ने पूजा पाल को पार्टी से निकाल दिया, जब उन्होंने योगी सरकार की तारीफ की। यह घटना एक बार फिर पूजा पाल को सियासी चर्चा में ला खड़ी है। उनकी त्रासदी और सियासी यात्रा ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अनोखा अध्याय रचा है, जिसमें मायावती और अखिलेश ने उनकी कहानी को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया। क्या पूजा पाल का यह निष्कासन उनकी सियासी पारी का अंत है, या यह एक नई शुरुआत की ओर इशारा करता है? यह सवाल अब यूपी की सियासत में गूंज रहा है।

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