दिवाली खत्म आस्था खत्म सड़कों पर मिली लोगों की आस्था की मूर्तियां

दिवाली खत्म आस्था खत्म सड़कों पर मिली लोगों की आस्था की मूर्तियां 


उत्तर प्रदेश कानपुर। दीपावली का पर्व हर साल श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर गणेश और लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना बड़े विधि-विधान से की जाती है। लोग साल भर इनकी कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं, लेकिन जैसे ही दीपावली का अगला त्योहार आता है, इन देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा का स्तर कहीं खो जाता है। प्रतिमाएं, जो उत्सव के दौरान पूजित होती हैं, त्योहार के बाद कूड़े के ढेर में फेंक दी जाती हैं। कानपुर से शुक्लागंज के बीच में पढ़ने वाला गंगा पुल पर लोगों की आस्था की मूर्ति कूदे के ढेर तरह पड़ी मिली। यह स्थिति न केवल आस्था को ठेस पहुंचाती है, बल्कि हमारे धार्मिक आचार-व्यवहार पर भी प्रश्न उठाती है। सनातन धर्म में हर तीज-त्योहार पर लोग विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की पूजा करते हैं। नवरात्रि, कृष्ण जन्माष्टमी, दीपावली, हनुमान जयंती और रामनवमी जैसे त्योहारों के दौरान घरों में विधिपूर्वक प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। प्रतिमाओं को सुबह-शाम भोग अर्पित करने और आरती करने के साथ ही, भक्तों की कामनाओं का एक बड़ा हिस्सा होता है। लेकिन जैसे ही त्योहार का समय खत्म होता है, लोग उन प्रतिमाओं को बिना किसी सम्मान के कूड़े के ढेर में फेंक देते हैं। इस स्थिति का सबसे बड़ा कारण है एक बार फिर से नई प्रतिमाओं की खरीदारी। अगले साल जब वही त्योहार आता है, तब लोग फिर से बाजार से नई प्रतिमाएं लेकर आते हैं और पुरानी को कूड़े में डाल देते हैं। गणेश, लक्ष्मी, दुर्गा, भोलेनाथ, श्री कृष्ण और हनुमान जी की मूर्तियों का ये तिरस्कार भक्ति की भावना को बुरी तरह प्रभावित करता है। गंगा पुल से गुजर रहे राहगीरों का कहना है कि जब वे त्योहारों पर इन देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, तो वे मन में एक गहरी श्रद्धा रखते हैं। लेकिन जब पूजा खत्म होती है, तो वे देख रहे हैं कि कैसे प्रतिमाओं का अपमान किया जा रहा है। जगह-जगह पर कूड़े के ढेर में पड़े गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों पर जानवरों का घूमना यह दर्शाता है कि आस्था की इस परंपरा में कुछ गलत हो रहा है। कई फाउंडेशन के अलावा अन्य सामाजिक संस्था के पदाधिकारियों ने संकल्प लिया कि पूजा के बाद की जाने वाली विधियों को भी महत्व दें। देवी-देवताओं की मूर्तियों को कूड़े के ढेर में डालने के बजाय, हमें उनका सम्मान करते हुए सही तरीके से उनका विसर्जन करना चाहिए। केवल तभी हम अपने धार्मिक मूल्यों का सही पालन कर सकेंगे और अपनी आस्था को वास्तविकता में बदल सकेंगे।

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